Tuesday, December 04, 2018

संस्कृतरसास्वादः
विश्वहितायसंस्कृतम्
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■ संस्कृत में काल दस भागों में विभाजित है,जिन्हें दस लकारों के नाम से जानते है --
०१ ) लट् ---- ल् + अ + ट्
०२ ) लिट् ---- ल् + इ + ट्
०३ ) लुट् ---- ल् + उ + ट्
०४ ) लृट् ---- ल् + ऋ + ट्
०५ ) लेट् ---- ल् + ए + ट्
०६ ) लोट् ---- ल् + ओ + ट्
०७ ) लङ् ---- ल् + अ + ङ्
०८ ) लिङ्---- ल् + इ + ङ्
०९ ) लुङ्---- ल् + उ + ङ्
१० ) लृङ्---- ल् + ऋ + ङ्
*स्मरण करने की विधि* --
ल् में ( अ इ उ ऋ ए ओ ) क्रम से जोड़ दो । और पहले कर्मों में ( ट् ) जोड़ते जाओ ।
फिर बाद में ( ङ् ) जोड़ते जाओ जब तक कि दश लकार पूरे न हो जाएँ ।
*लकारों के काल इसप्रकार हैं*
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(१) लट्-लकार = वर्तमान काल ।
जैसे –राम खेलता है।
रामः क्रीडति
(२) लिट् --अनद्यतन परोक्ष भूतकाल । जो अपने साथ न घटित होकर किसी इतिहास का विषय हो ।
जैसे --
राम ने रावण को मारा था ।
रामः रावणं जघान,
जघान जघ्नतुः जघ्नुः
जघनिथ जघ्नथुः जघ्न
जघान जघ्निव जघ्निम
(३) लुट्-लकार -- अनद्यतन भविष्यत काल । जो आज का दिन छोड़ कर आगे होनो वाला हो ।
जैसे -
राम परसों विद्यालय नहीं जायेगा ।
रामः परश्वं विद्यालयं न गन्ता |
गन्ता गन्तारौ गन्तारः
गन्तासि गन्तास्थः गन्तास्थ
गन्तास्मि गन्तास्वः गन्तास्मः
(४) लृट्-लकार -- सामान्य भविष्य काल । जो आने वाले किसी भी समय में होने वाला हो ।
जैसे -
राम यह कार्य करेगा ।
रामः इदम् कार्यम् करिष्यति।
(५) लेट्-लकार -- यह लकार केवल वेद में प्रयोग होता है ईश्वर के लिए क्योंकि वह किसी काल में बंधा नहीं है ।
(६) लोट-् लकार --ये लकार आज्ञा, अनुमति लेना, प्रशंसा करना, प्रार्थना आदि में प्रयोग होता है ।
जैसे -- आप जाओ -भवान् गच्छतु , वह खेले -सः क्रीडतु , तुम खाओ - त्वं खाद , क्या मैं बोलूँ -किम् अहं वदानि ?
(७) लङ्- लकार -- अनद्यतन भूत काल । आज का दिन छोड़ कर किसी अन्य दिन जो हुआ हो ।
जैसे --
आपने उस दिन भोजन पकाया था - भवान् तस्मिन् दिने भोजनं अपचत् ।
(८) लिङ् -लकार -- इसमें दो प्रकार के लकार होते हैं --
■आशीर्लिङ्--किसी को आशीर्वाद देना हो ।
जैसे --
आप जिओ - भवान् जीव्यात्।
तुम सुखी रहो।त्वं सुखी भूया: । आदि
■विधिलिङ्--किसी को विधि बतानी हो ।
जैसे --
आपको पढ़ना चाहिए - भवान् पठेत्।
मुझे जाना चाहिए - अहं गच्छेयम् ।
आदि ।
(९) लुङ्-लकार -- सामान्य भूत काल । जो कभी भी बीत चुका हो ।
जैसे -
*उसने खाना खाया - सः भोजनं अखादीत् ।*
(१०) लृङ्-लकार --ऐसा भूत काल जिसका प्रभाव वर्तमान तक हो । जब किसी क्रिया की असिद्धि हो गई हो ।
जैसे --
यदि वह पढ़ता तो विद्वान बनता ।
यदि सः अपठिष्यत् तु विद्वान् अभविष्यत्।.
samskritharasaswad

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